वीर शिरोमणि : महाराणा प्रताप का परिचय
महाराणा प्रताप जन्मभूमि की स्वतंत्रता के संघर्ष के प्रतिक है. वे एक कुशल राजनीतिज्ञ, आदर्श संगठनकर्ता और देश की स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने को तत्पर रहने वाले महान सेनानी थे. अपनी संस्कृति और स्वाभिमान की रक्षा के लिए उन्होंने वन वन भटकना तो स्वीकार किया मगर मुग़ल सम्राट अकबर के सामने अधीनता स्वीकार नहीं की. महाराणा प्रताप भारतीय इतिहास के ऐसे महानायक है.
जिनकी अनन्य विशेषताओ पर भारतीय इतिहासकारों ही नहीं, पाश्चात्य लेखकों और कवियों को भी अपनी लेखनी चालायी है. प्रताप स्वदेश पर अभिमान करने वाले, स्वतंत्रता के पुजारी, दृढ़ प्रतिज्ञ और एक वीर क्षत्रिये थे.
सम्राट अकबर ने अपना समस्त बुद्धिबल, धनबल और बाहुबल लगा दिया था, मगर प्रताप को झुका नहीं पाया था. प्रताप का प्रण था की बाप्पा रावल का वंशज, अपने गुरु, भगवान, और अपने माता-पिता को छोड़ कर किसी के आगे शीश नहीं झुकाएगा.
प्रताप अपनी सारी जिंदगी अपने दृढ़ संकल्प पर अटल रहे, वे अकबर को ‘बादशाह’ कह कर सम्बोधित कर दे ऐसा असंभव माना जाता था, उनका मनना था की “अकबर एक तुर्क है और हमेशा एक तुर्क ही रहेगा, मुग़ल पहले हमारे साथ मित्रता का हाथ बढ़ाते है
फिर अपनी बुरी दृष्टी हमारे घर की स्त्रियों पर डालते है”, और ये हम सभी भी जानते है की उनका सोचना बिलकुल सही है.
महाराणा प्रताप ने अपनी जीवन में एक भविष्यवाणी की थी जो की बिलकुल ही सही हो गयी, वो ये था कि “ हमारा हिन्दू धर्म जैसा है वैसा ही रहेगा, हमारा भारतवर्ष देश जैसा है वैसा ही रहेगा, पर एक दिन ऐसा आएगा की हमारी इस पवित्र भूमि से मुगलों का नामोनिशान मिट जायेगा”.
स्वतंत्रता की रक्षा की लिए विषम परिस्थितियों में भी प्रताप ने जो संघर्ष किया, उसकी राजकुलों में जन्मे लोगो के साथ तुलना और कल्पना भी नहीं की जा सकती है . मेवाड़ नरेश होते हुए भी महाराणा का अधिकांश जीवन वनों और पर्वतों में भटकते हुए व्यतीत हुआ, अपने अदम्य इच्छाशक्ति, अपूर्व शोर्य, और रण कौशल, से अंततः मेवाड़ को स्वाधीन करने में सफल हुए.
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